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{{KKRachna
|रचनाकार=विलिमीर ख़्लेबनिकफ़
|अनुवादक=वरयाम सिंह
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}[[Category:रूसी भाषा]]
<poem>
वर्ष, लोग ओर राष्ट्र
दूरे चले जाते हैं सदा के लिए
जैसे बहता हुआ पानी ।
प्रकृति के लचीले दर्पण में
तारे जाल हैं, और मछलियाँ — हम
और देवता — अन्धकार में प्रेतात्माएँ ।
—
'''मूल रूसी भाषा से अनुवाद : वरयाम सिंह'''
</poem>
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वर्ष, लोग ओर राष्ट्र
दूरे चले जाते हैं सदा के लिए
जैसे बहता हुआ पानी ।
प्रकृति के लचीले दर्पण में
तारे जाल हैं, और मछलियाँ — हम
और देवता — अन्धकार में प्रेतात्माएँ ।
—
'''मूल रूसी भाषा से अनुवाद : वरयाम सिंह'''
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