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{{KKRachna
|रचनाकार=जय गोस्वामी
|अनुवादक=जयश्री पुरवार
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
कहाँ तक पढ़ोगी मेरी यह किताब
नीले रंग की
हरेक पृष्ठ सूखे गरल से चिपका हुआ
बार बार जीभ पर
उँगली लगाकर ही खोलना पड़ेगा
हर पन्ना तुम्हें ।
लोग आएँगे तो देखेंगे
मेज़ पर अधखुली किताब
और उसकी बग़ल मे बैठी हो तुम ।
और वहाँ
बैठे - बैठे ही न जाने कब
निस्तब्ध हो गईं ।
'''जयश्री पुरवार द्वारा मूल बांग्ला से अनूदित'''
</poem>
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|रचनाकार=जय गोस्वामी
|अनुवादक=जयश्री पुरवार
|संग्रह=
}}
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कहाँ तक पढ़ोगी मेरी यह किताब
नीले रंग की
हरेक पृष्ठ सूखे गरल से चिपका हुआ
बार बार जीभ पर
उँगली लगाकर ही खोलना पड़ेगा
हर पन्ना तुम्हें ।
लोग आएँगे तो देखेंगे
मेज़ पर अधखुली किताब
और उसकी बग़ल मे बैठी हो तुम ।
और वहाँ
बैठे - बैठे ही न जाने कब
निस्तब्ध हो गईं ।
'''जयश्री पुरवार द्वारा मूल बांग्ला से अनूदित'''
</poem>