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तुम आए भी न थे / रूपम मिश्र
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14:56, 4 जुलाई 2023
दुख की ऐसी नींद कि जैसे जान ही न हो देह में
तभी एक अकतीत - सा
(अजीब-सा, कुछ-कुछ कसैला-सा)
सवाल चित में उठा
तुम आए ही कब थे
जो मैं तुम्हारे जाने का शोक मना रही हूँ
अनिल जनविजय
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