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|रचनाकार=राम सेंगर
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
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<poem>
ख़ुशी कहाँ ,
कीली पर,
घूमता सवाल ।
रोटी, नचती भागे
गिरते -पड़ते
पीछे - पीछे हम बदहवास
पसीना - पसीना ।
अब आकर हैं जागे
पूँजी औ ' तंत्र के
इरादों ने छीना जब
सुविधा का जीना ।
बाहर आए
हमलों-शक़-सुर्रों के दवाब
देखा तो चिंथे पड़े
घायल , बदहाल ।
ख़ुशी कहाँ
कीली पर
घूमता सवाल ।
</poem>
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ख़ुशी कहाँ ,
कीली पर,
घूमता सवाल ।
रोटी, नचती भागे
गिरते -पड़ते
पीछे - पीछे हम बदहवास
पसीना - पसीना ।
अब आकर हैं जागे
पूँजी औ ' तंत्र के
इरादों ने छीना जब
सुविधा का जीना ।
बाहर आए
हमलों-शक़-सुर्रों के दवाब
देखा तो चिंथे पड़े
घायल , बदहाल ।
ख़ुशी कहाँ
कीली पर
घूमता सवाल ।
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