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मैंने चाहा ही नहीं था मोतियों का घर मिले
सब तरह के सुख लिए त्रोतात्रेता, कभी द्वापर मिले
मैंने कुछ अंगार माँगा था वो मेरे पास है
तुम कहो तो आज वह अंगार दूँ मैं ।
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