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{{KKRachna
|रचनाकार=विकास
|संग्रह=
}}
<Poem>
हाथ में पत्थर उठाया आपने
आइना हमको दिखाया आपने
लोग मौसम से बहुत अंजान थे
शोर बारिश का मचया आपने
धूप में उतरकर आई चांदनी
जब कभी भी मुस्कराया आपने
लोग दीवारें उठाने लग गए
फ़ासले का गुल खिलाया आपने
अपनी तन्हाई से फिर आना पड़ा
गीत कोई गुनगुनाया आपने
</poem>
{{KKRachna
|रचनाकार=विकास
|संग्रह=
}}
<Poem>
हाथ में पत्थर उठाया आपने
आइना हमको दिखाया आपने
लोग मौसम से बहुत अंजान थे
शोर बारिश का मचया आपने
धूप में उतरकर आई चांदनी
जब कभी भी मुस्कराया आपने
लोग दीवारें उठाने लग गए
फ़ासले का गुल खिलाया आपने
अपनी तन्हाई से फिर आना पड़ा
गीत कोई गुनगुनाया आपने
</poem>