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अभी भी घसीट रहे हैं कविताएँ
मानो किसी को याद हो अब भी
प्रलयपूर्व काल की उनकी वह पुरानी भाषा 
लेकिन हमारा समाज कल्याण विभाग
पूरी नज़र रखता है
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