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Kavita Kosh से
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एक किताब की तरह
स्वयं को खोले और बंद बन्द करेपुरुष की मर्जी पर।मरज़ी पर ।
एक किताब की तरह
आँखें तैराता पुरुष
जहाँ मन वहाँ रुकता
तन्न तन्न कर पढ़ता।पढ़ता ।
विभोर और क्लांत क्लान्त हो, तो हटा देताएक कोने में। में । खर्राटे भरता तृप्ति में।में । '''मूल ओड़िया भाषा से अनुवाद : शंकरलाल पुरोहित'''
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