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Kavita Kosh से
वर्ष पर वर्ष
स्थिर मुद्रा में खड़े रहना ही
हमारी अभिनवता, कोई कहता।कहता ।
हमारी नग्नता ही हमारा प्रतिवाद
पत्थर बन गए,
हेतु होते विस्मय का,
पथिक का, पर्यटक का।का ।
प्राचुर्य और पश्चात्ताप में गढ़ा
एक कालखंडकालखण्डक्या हो सकता है कोणार्क?
समय है निरुत्तर।निरुत्तर । '''मूल ओड़िया भाषा से अनुवाद : शंकरलाल पुरोहित'''</poem>
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