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|संग्रह=अशोक अंजुम की हास्य व्यंग्य ग़ज़लें / अशोक अंजुम
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<poem>
बन जाते सब काम, ज़माना रिश्वत का
रूठें जब घनश्याम, मनाना रिश्वत का

जाल बिछाओ पंछी निश्चित आयेंगे
रिश्वत की है टेर है दाना रिश्वत का

बड़े-बड़े विषधर भी डांस करें जमकर
छेड़ें जब गुलफाम तराना रिश्वत का

रिश्वत देकर सुलटाओ सब अंजुम जी
आएगा कब काम कमाना रिश्वत का

खुलकर खेलो खेल डरो मत अंजुम जी
बदलेंगे इलजाम है थाना रिश्वत का
</poem>
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