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Kavita Kosh से
आसमान में उड़ती
चील की झोली में
अनगिनत मुट्ठियां मुट्ठियाँ रेत है
जमीन पर फले
कबूतरों के लिए
खाली पेट कहीं शुरू होता है तांडव
कहीं नंगे तन भरत–नाट्यम्
और कहीं रणबांकुरे रणबाँकुरे करने लगते अभ्यास
पहाड़ से समुद्र तक
फैली जमीन पर
कबूतरों की गुटरगूं गुटरगूँ
और चील का राग है
बहुत कम दिखाई पड़ते हैं
जिनका अपना–अपना राग है
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