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{{KKRachna
|रचनाकार = शमशेर बहादुर सिंह
}}

<poem>
बँधा होता भी
मौन यदि
उस व्यथा के रूप से कोमल

जो कि तुम हो
समय पा लेता
उसे तब भी।

(1941)
</poem>
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