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Kavita Kosh से
माटी में घट जल में लहर , लय स्वर्ण भूषन में रहे ,
वैसे जगत मुझसे सृजित , मुझमें विलय कण कण अहे.----१०
ब्रह्मा से ले पर्यंत तृण, जग शेष हो तब भी मेरा,
अस्तित्व, अक्षय , नित्य, विस्मय, नमन हो मुझको मेरा.---११
मैं देहधारी हूँ, तथापि अद्वैत हूँ, विस्मय अहे,
आवागमन से हीन जग को व्याप्त कर स्थित महे.-----१२
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