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नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=केशव |संग्रह=|संग्रह=धरती होने का सुख / केशव }} <poem> ...
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{{KKRachna
|रचनाकार=केशव
|संग्रह=|संग्रह=धरती होने का सुख / केशव
}}
<poem>
ऐसे नहीं होता
कुछ भी
एक पत्ता तक
नहीं
झरता
कहा हुआ भी
अनसुना रह जाता है
हवा का एक झोंका तक
बिन छुए
बगल से गुजर जाता है
वैसे
खामोशी में
सब कुछ हो जाता है
अनकहा
कहा बन जाता है
सोई हुई पृथ्वी
जो कई सदियों से दफन
उसके सीने में।
</poem>
{{KKRachna
|रचनाकार=केशव
|संग्रह=|संग्रह=धरती होने का सुख / केशव
}}
<poem>
ऐसे नहीं होता
कुछ भी
एक पत्ता तक
नहीं
झरता
कहा हुआ भी
अनसुना रह जाता है
हवा का एक झोंका तक
बिन छुए
बगल से गुजर जाता है
वैसे
खामोशी में
सब कुछ हो जाता है
अनकहा
कहा बन जाता है
सोई हुई पृथ्वी
जो कई सदियों से दफन
उसके सीने में।
</poem>