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Kavita Kosh से
डुबकी कभी लगाता है ।<br>पर्वत –घाटी पार करे<br> मैदानों में चलता है ।<br> दिनभर चलकर थक जाता <br> साँझ हुए फिर ढलता है ।<br> नींद उतरती आँखों में <br> फिर सोने चल देता है ।<br> हमें उजाला दे करके<br> कभी नहीं कुछ लेता है <br>