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{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार: [[=बशीर बद्र]][[Category:कविताएँ]]}}[[Category:गज़लग़ज़ल]][[Category:बशीर बद्र]]<poem>वही ताज है वही तख़्त है वही ज़हर है वही जाम हैये वही ख़ुदा की ज़मीन है ये वही बुतों का निज़ाम है
~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~बड़े शौक़ से मेरा घर जला कोई आँच न तुझपे आयेगीये ज़ुबाँ किसी ने ख़रीद ली ये क़लम किसी का ग़ुलाम है
वही ताज है वही तख़्त है वही ज़हर है वही जाम है <br>ये वही ख़ुदा की ज़मीन है ये वही बुतों का निज़ाम है<br><br>  बड़े शौक़ से मेरा घर जला कोई आँच न तुझपे आयेगी <br>ये ज़ुबाँ किसी ने ख़रीद ली ये क़लम किसी का ग़ुलाम है <br><br> मैं ये मानता हूँ मेरे दिये तेरी आँधियोँ ने बुझा दिये <br>मगर इक जुगनू हवाओं में अभी रौशनी का इमाम है <br><br/poem>