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मिरी जाँ तेरी आँख खुलने से पहले
चला हुँ मैं ये रात ढलने से पहले!

मैं पत्तों से थोड़ी सी शबनम उठा लूँ,
मैं सूरज की पेहली किरण को चुरा लूँ

किसी फूल की खिल-खिलाती हँसी को,
किसी खेत की लह-लहाती छवी को!

चहकते हुए पंछियों की सदाएं,
ठुमकती हुई हिरणियों की अदाएं!

भरी दो-पहर में इक अम्बिया की छाया,
महकती हवा और नदिया की धारा!

जो हो जाये फिर शाम को लाल अम्बर
मैं थोड़ा सा सिन्दूर उस का चुरा कर!

ज़रा अपनी आँखों की डिबिया में भर लुँ,
मैं पलकों के पीछे इन्हें क़ैद कर लुँ!

इसी आशियाने में चन्दा निकलते,
मैं आ जाउँगा लौट कर शाम ढलते!

तेरे ख्वाब का शहर इन से सजा के,
तेरी रात के घर की रंगत बढा के!

तेरे चेहरे को रात भर मैं तकुंगा
तेरी नींद की पासबानी करुंगा!
यही सोच कर आज घर से चला हुँ,

मेरी जाँ तेरी आँख खुलने से पहले!
चला हूँ मैं ये रात ढलने से पहले!

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