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[[Category:कविताएँ]]
[[Category:जिगर मुरादाबादी]][[Category:गज़लग़ज़ल]]
दिल गया रौनके रौनक-ए-हयात गई ।
ग़म गया सारी कायनात गई ।।
आँख झपकी ही थी के रात गई ।
नहीं मिलता मिज़ाजेमिज़ाज-ए-दिल हमसे,
ग़ालिबन दूर तक ये बात गई ।
मौत आई अगर हयात गई ।
</poem>