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{{KKRachna
|रचनाकार=सौदा
}}
[[category: ग़ज़ल]]
<poem>
न मुझसे कह कि चमन में बहार आई है
ये मुर्ग़े-कुश्तनी<ref>मारे जाने लायक़ पक्षी</ref> कब क़ाबिले-रिहाई है
असर किया तेरे दिल में मुझ अश्क ने<ref>मेरे आँसुओं ने</ref> तो क्या
डुबा के ख़ल्क़<ref>जनता, सृष्टि</ref> को किश्ती मिरी तिराई है
तिरे निकाले से तुझ घर से कौन जाता है!
वही तो जायेगा प्यारे कि जिसकी आई है
ग़ुरूरे-तक़वा से<ref>धार्मिकता के घमंड से</ref> कितने थे शैख़ जी सरकश<ref>उद्दंड</ref>
पर अब अमामा<ref>पगड़ी</ref> ने गर्दन तनिक नवाई है
गए थे आप ख़ुदावंद सैरे-बाग़ कि गुल
जहाँ खिले है वहाँ बू-ए-किब्रियाई<ref>ख़ुदाई की बू</ref> है
करे हैं दर पे तिरे शैख़ो-बरहमन सज्दा
बुतों की हुस्नो-अदा तेरे घर की ख़ुदाई है
तने-गुदाज़<ref>पिघलता बदन</ref> में दिल क्योंके<ref>क्योंकर</ref> तैं<ref>तू</ref> रखा 'सौदा'
ये आग पानी में किस सेहर<ref>जादू</ref> से छिपाई है
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|रचनाकार=सौदा
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न मुझसे कह कि चमन में बहार आई है
ये मुर्ग़े-कुश्तनी<ref>मारे जाने लायक़ पक्षी</ref> कब क़ाबिले-रिहाई है
असर किया तेरे दिल में मुझ अश्क ने<ref>मेरे आँसुओं ने</ref> तो क्या
डुबा के ख़ल्क़<ref>जनता, सृष्टि</ref> को किश्ती मिरी तिराई है
तिरे निकाले से तुझ घर से कौन जाता है!
वही तो जायेगा प्यारे कि जिसकी आई है
ग़ुरूरे-तक़वा से<ref>धार्मिकता के घमंड से</ref> कितने थे शैख़ जी सरकश<ref>उद्दंड</ref>
पर अब अमामा<ref>पगड़ी</ref> ने गर्दन तनिक नवाई है
गए थे आप ख़ुदावंद सैरे-बाग़ कि गुल
जहाँ खिले है वहाँ बू-ए-किब्रियाई<ref>ख़ुदाई की बू</ref> है
करे हैं दर पे तिरे शैख़ो-बरहमन सज्दा
बुतों की हुस्नो-अदा तेरे घर की ख़ुदाई है
तने-गुदाज़<ref>पिघलता बदन</ref> में दिल क्योंके<ref>क्योंकर</ref> तैं<ref>तू</ref> रखा 'सौदा'
ये आग पानी में किस सेहर<ref>जादू</ref> से छिपाई है
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