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कहता था कल किसू से करूँगा किसी को क़त्ल
इतना तो कुश्तनी1 कुश्तनी<ref>मारने योग्य</ref> नहीं कोई मगर कि हम
देखें तो किसकी चश्म2 चश्म<ref>आँख </ref> से गिरता है लख़्ते-दिल3दिल<ref>दिल का टुकड़ा</ref>तू इस तरह से रो सके ऐ अब्रे-तर4 तर<ref>भीगा बादल </ref> कि हम
बैठा न कोई छाँव, न पाया किसी ने फल
बे-बर्गो-बर5 बर<ref>पत्तों और फलों से रहित</ref> नहीं कोई ऐसा शजर6 शजर<ref>पेड़</ref> कि हम
इतना कहाँ है सोज़तलब9 सोज़तलब<ref>आग का इच्छुक</ref> दिल पतंग10 पतंग<ref>पतंगा</ref>का
रखती नहीं है शमा भी ऐसा जिगर कि हम
'सौदा' न कहते थे कि किसी को तू दिल न दे
'''शब्दार्थ:
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