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लेखक: [[{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार=प्यारेलाल शोकी]][[Category:कविताएँ]]}}[[Category:गज़लग़ज़ल]][[Category:प्यारेलाल शोकी]] ~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~<poem>
जिन प्रेम रस चाखा नहीं, अमृत पिया तो क्या हुआ ।
 
जिन इश्क में सर ना दिया, सो जग जिया तो क्या हुआ ।।
ताबीज औ तूमार में सारी उमर जाया किसी,
 
सीखे मगर हीले घने, मुल्ला हुआ तो क्या हुआ ।
जोगी न जंगम से बड़ा, रंग लाल कपड़े पहन के,
 
वाकिफ़ नहीं इस हाल से कपड़ रँगा तो क्या हुआ ।
जिउ में नहीं पी का दरद, बैठा मशायख होय कर,
 
मन का रहत फिरता नहीं सुमिरन किया तो क्या हुआ ।
जब इश्क के दरियाव में, होता नहीं गरकाब ते,
 
गंगा, बनारस, द्वारका पनघट फिरा तो क्या हुआ ।
मारम जगत को छोड़कर, दिल तन से ते खिलवत पकड़,
 
शोकी पियारेलाल बिन, सबसे मिला तो क्या हुआ ।
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