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नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कविता वाचक्नवी }} <poem> '''दोष''' हे सूर्यदेव! कुंति के ...
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=कविता वाचक्नवी
}}
<poem>
'''दोष'''
हे सूर्यदेव!
कुंति के
युगों से भीगे
झिलमिलाती झील-से
आँचल पर
शैवाल अंधेरा
गुपचुप खुभा है
चीर,
तल के जमाव तक
मृण्मय कोशों तक
नहीं पहुँच पातीं
स्वर्ण किरणें
सुनहली धूप
और पीढ़ियाँ समझती हैं
किरन-पुत्र तुम्हारा
जल में बहा दिया मैंने।
</poem>
{{KKRachna
|रचनाकार=कविता वाचक्नवी
}}
<poem>
'''दोष'''
हे सूर्यदेव!
कुंति के
युगों से भीगे
झिलमिलाती झील-से
आँचल पर
शैवाल अंधेरा
गुपचुप खुभा है
चीर,
तल के जमाव तक
मृण्मय कोशों तक
नहीं पहुँच पातीं
स्वर्ण किरणें
सुनहली धूप
और पीढ़ियाँ समझती हैं
किरन-पुत्र तुम्हारा
जल में बहा दिया मैंने।
</poem>