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रश्मिरथी / तृतीय सर्ग / भाग 4

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|संग्रह= रश्मिरथी / रामधारी सिंह 'दिनकर'
}}
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'शत कोटि विष्णु, ब्रह्मा, महेश, शत कोटि विष्णु जलपति, धनेश,[[रश्मिरथी / तृतीय सर्ग / भाग 3|<< तृतीय सर्ग / भाग 3]] | [[रश्मिरथी / तृतीय सर्ग / भाग 5 | तृतीय सर्ग / भाग 5 >>]]
 'शत कोटि विष्णु, ब्रह्मा, महेश,  :शत कोटि विष्णु जलपति, धनेश, शत कोटि रुद्र, शत कोटि काल,  :शत कोटि दण्डधर लोकपाल।
जञ्जीर बढ़ाकर साध इन्हें,
'भूलोक, अतल, पाताल देख,
 
:गत और अनागत काल देख,
'भूलोक, अतल, पाताल देख, गत और अनागत काल यह देखजगत का आदि-सृजन,
यह देख जगत का आदि-सृजन, :यह देख, महाभारत का रण,
मृतकों से पटी हुई भू है,
'अम्बर में कुन्तल-जाल देख,
'अम्बर में कुन्तल-जाल देख, :पद के नीचे पाताल देख,
मुट्ठी में तीनों काल देख,  :मेरा स्वरूप विकराल देख।
सब जन्म मुझी से पाते हैं,
'जिह्वा से कढ़ती ज्वाल सघन,
'जिह्वा से कढ़ती ज्वाल सघन, :साँसों में पाता जन्म पवन,
पड़ जाती मेरी दृष्टि जिधर, हँसने लगती है सृष्टि उधर!
:हँसने लगती है सृष्टि उधर!
मैं जभी मूँदता हूँ लोचन,
'बाँधने मुझे तो आया है,
'बाँधने मुझे तो आया है, :जंजीर बड़ी क्या लाया है?
यदि मुझे बाँधना चाहे मन,  :पहले तो बाँध अनन्त गगन।
सूने को साध न सकता है,
'हित-वचन नहीं तूने माना,
'हित-वचन नहीं तूने माना, :मैत्री का मूल्य न पहचाना,
तो ले, मैं भी अब जाता हूँ,  :अन्तिम संकल्प सुनाता हूँ।
याचना नहीं, अब रण होगा,
'टकरायेंगे नक्षत्र-निकर,
'टकरायेंगे नक्षत्र-निकर, :बरसेगी भू पर वह्नि प्रखर,
फण शेषनाग का डोलेगा,  :विकराल काल मुँह खोलेगा।
दुर्योधन! रण ऐसा होगा।
'भाई पर भाई टूटेंगे,
'भाई पर भाई टूटेंगे, :विष-बाण बूँद-से छूटेंगे,
वायस-श्रृगाल सुख लूटेंगे,  :सौभाग्य मनुज के फूटेंगे।
आखिर तू भूशायी होगा,
थी सभा सन्न, सब लोग डरे,
थी सभा सन्न, सब लोग डरे, :चुप थे या थे बेहोश पड़े।
केवल दो नर ना अघाते थे,  :धृतराष्ट्र-विदुर सुख पाते थे।
कर जोड़ खड़े प्रमुदित, निर्भय,
दोनों पुकारते थे 'जय-जय'!
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