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19:56, 31 जुलाई 2009
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आज सुबह से धूप गरमाने लगीकभी उबाल कर ठंडा किया शरारों नेपर्वतों की बर्फ पिघलाने लगीकभी तो आग लगाई है अशआरों ने
बंद है गो द्वार कारागार कापर झरोखों जहाँ से हवा आने लगीपार उतरने में जन्म लग जाएँपटक दिया है वहाँ वक्त के कहारों ने
फिर मुरम्मत हो रही है छतरियाँ शुरू हुई थी सूखी तीलियों से पत्तों सेबादरी आकाश पर छाने लगीमगर फैलाई तो हवाओं ने देवदारों ने
छिड़ गई चर्चा कहीं से भूख कीकहाँ पे जा अब रोना ग़मों का हम रोएंगाँव की चौपाल घबराने लगीमिजाज़ पुरसी में किया जो ग़मगुसारों ने
क्या करें हदबंदियों पर अब यकींबाड़ ही जब खेत को खाने लगी इतना गहरा तो हुआ तल कूप कालौट कर अपनी सदा आने लगी कब तलक तेरा भरम पाले रहूँनींव से दिवार बतियाने लगी जो दुहाई दे रहे किसी के प्रेम में पाग़ल विलाप करते थे प्रेम कीखौफ उनसे रूह अब खाने लगीलहुलुहान किए उसके पलटवारो ने
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