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{{KKRachna
|रचनाकार=सीमाब अकबराबादी
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मैं अपने हाल से खु़द बेख़बर हूँ।
तुम्हारी कमनिगही का गिला क्या॥

दुआ दिल से जो निकले कारगर हो।
यहाँ दिल ही नहीं दिल से दुआ क्या॥

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