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|रचनाकार=जानकीवल्लभ शास्त्री
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रंग लाए अंग चम्पई
:::नई लता के
धड़कन बन तरु को
:::अपराधिन-सी ताके
फड़क रही थी कोंपल
आँखुओं से ढक के
वासन्ती उझक झुकी,
: सिमटी सकुचा के
</poem>
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