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{{KKRachna
|रचनाकार=मुनव्वर राना
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<poem>

तुम्हारे पास ही रहते न छोड़ कर जाते
तुम्ही नवाजते तो क्यों इधर - उधर जाते

किसी के नाम से मंसूब ये इमारत थी
बदन सराय नहीं था कि सब ठहर जाते
</poem>
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