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Kavita Kosh से
रिश्मयों को आज फिर,
आकर अंधेरा छल न जाए,
हम अंधेरों का अमंगल,
दूर अंबर से हटाएं,
एक दीपक तुम जलाआेजलाओे,
एक दीपक हम जलाएं।
वेदना के हाथ गहकर,
वेग उनका साथ बहकर।
झिलमिलाती रिश्मयों की,
एक दीपक हम जलाएं।
अब क्षितिज पर हम उगाएं,
हम कलह को भूल कर सब,
नव-सुमंगल गीत गाएं,
एक दीपक तुम जलाआेजलाओे,
एक दीपक हम जलाएं।
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