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Kavita Kosh से
जिसको बूझा बुकरात नहीं-
सहसा अपहृत हो जाने पर
गुरू ज्ञानी धोखा खाते हैं-
सहसा अपहृत हो जाने पर
अपना सपना,
उसमें भी आकर्षक कितना!