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Kavita Kosh से
|रचनाकार=बशीर बद्र
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आस होगी न आसरा होगा
नाम हम ने लिखा था आँखों में
आसमाँ भर गया परिंदों से
पेड़ कोई हरा गिरा होगा
कितना दुश्वार <ref>कठिन</ref> था सफ़र उस कावो सर-ए-शाम <ref>शाम होते ही</ref> सो गया होगा दुश्वार = कठिन ; सर-ए-शाम = शाम होते ही
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