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|रचनाकार=सूरदास
}}
[[Category:पद]]
राग कान्हरा
<poem>
सोइ रसना जो हरिगुन गावै।
 
नैननि की छवि यहै चतुरता जो मुकुंद मकरंदहिं धावै॥
 
निर्मल चित तौ सोई सांचो कृष्ण बिना जिहिं और न भावै।
 
स्रवननि की जु यहै अधिकाई, सुनि हरि कथा सुधारस प्यावै॥
 
कर तैई जै स्यामहिं सेवैं, चरननि चलि बृन्दावन जावै।
 
सूरदास, जै यै बलि ताको, जो हरिजू सों प्रीति बढ़ावै॥
</poem>
भावार्थ :- `हरि-परायण' होने में ही हरेक इंद्रिय की सार्थकता है, यही इस पद का सार है
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