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[[Category:ग़ज़ल]]
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शाम को सुबह-ए-चमन याद आई,
किसकी ख़ुश्बू-ए-बदन याद आई|
शाम को सुबह-ए-चमन याद आईजब ख़यालों में कोई मोड़ आया,<br>किसकी ख़ुश्बू-ए-बदन तेरे गेसू की शिकन याद आई|<br><br>
जब ख़यालों में कोई मोड़ आयायाद आए तेरे पैकर के ख़ुतूत,<br>तेरे गेसू की शिकन अपनी कोताही-ए-फ़न याद आई|<br><br>
याद आए तेरे पैकर के ख़ुतूतचांद जब दूर उफ़क़ पर डूबा,<br>अपनी कोताही-ए-फ़न तेरे लहजे की थकन याद आई|<br><br>
चांद जब दूर उफ़क़ पर डूबा,<br>तेरे लहजे की थकन याद आई|<br><br> दिन शुआओं से उलझते गुज़रा,<br>रात आई तो किरन याद आई| <br><br/poem>
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