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|रचनाकार=आरज़ू लखनवी
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जो दर्द मिटने-मिटते भी मुझको मिटा गया।
अब तक चारासाज़िये-चश्मेकरम है याद।
फाहा वहाँ लगाते थे, चरका जहाँ न था॥
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