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<poem>
अजीब तर्ज़-ए-मुलाकात अब के बार रही
तुम्हीं थे बदले हुए या मेरी निगाहें थीं
तुम्हारी नजरों से लगता था जैसे मेरे बजाए
तुम्हारे ओहदे की देनें तुम्हें मुबारक थीं
कुछ उस के बाद सियासत की बात भी निकली<br>अदब पर भी दो चार तबसरे फ़रमाए<br>मगर तुमने ना न हमेशा कि तरह ये पूछा<br>कि वक्त कैसा गुजरता है तेरा जान-ए-हयात ?<br><br>
पहर दिन की 2अज़ीयत अज़ीयत<ref>अत्याचार</ref> में कितनी शिद्दत है<br>उजाड़ रात की तन्हाई क्या क़यामत है<br>शबों की सुस्त रावी का तुझे भी शिकवा है<br>गम-ए-फिराक फिराक़ के किस्से 3निशातनिशात-ए-वस्ल का जिक्र<brref>मिलन की खुशी</ref> का ज़िक्र रवायतें ही सही कोई बात तो करते.....<br/poem> 2अत्याचार 3मिलन की खुशी{{KKMeaning}}