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:::आहट भी प्रतिध्वनित तुम्हारी
:::इस पर होती आई,
:तुम छेड़ो मेरी बीन कसी, रसराती।
 
इसके गुण-अवगुण बतलाऊँ?
क्या तुमसे अनजाना?
मिला मुझे है इसके कारण
गली-गली का ताना,
:::लेकिन बुरी-भली, जैसी भी,
:::है यह देन तुम्हारी,
:मैंने तो सेई एक तुम्हारी थाती।
:तुम छेड़ो मेरी बीन कसी, रसराती।
</poem>
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