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{{KKRachna
|रचनाकार=भारतेंदु हरिश्चंद्र
}}
<poem>
बनी यह सोभा आजु भली।
नथ में पोही प्रान-पिआरे निज कर कुसुम कली॥
झीने बसन बिथुर रहीं अलकैं श्री बृषभानु-लली।
यह छबि लखि तन-मन-धन बार्यौ तहँ ’हरिचंद’ अली॥
</poem>
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|रचनाकार=भारतेंदु हरिश्चंद्र
}}
<poem>
बनी यह सोभा आजु भली।
नथ में पोही प्रान-पिआरे निज कर कुसुम कली॥
झीने बसन बिथुर रहीं अलकैं श्री बृषभानु-लली।
यह छबि लखि तन-मन-धन बार्यौ तहँ ’हरिचंद’ अली॥
</poem>