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{{KKRachna
|रचनाकार=लाल्टू
|संग्रह=
}}
<poem>दिन ऐसे आ रहे हैं
सूरज से शिकवा करते भी डर लगता है
किसी को कत्ल होने से बचाने जो चले थे
सिर झुकाये खड़े हैं
दिन ऐसे आ रहे हैं
कोयल की आवाज़ सुन टीस उठती
फिर कोई गीत बेसुरा हो चला
दिन ऐसे आ रहे हैं
भू भू हा हा ।</poem>
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|रचनाकार=लाल्टू
|संग्रह=
}}
<poem>दिन ऐसे आ रहे हैं
सूरज से शिकवा करते भी डर लगता है
किसी को कत्ल होने से बचाने जो चले थे
सिर झुकाये खड़े हैं
दिन ऐसे आ रहे हैं
कोयल की आवाज़ सुन टीस उठती
फिर कोई गीत बेसुरा हो चला
दिन ऐसे आ रहे हैं
भू भू हा हा ।</poem>