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लहर1 / जयशंकर प्रसाद

41 bytes added, 19:02, 19 दिसम्बर 2009
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|रचनाकार=जयशंकर प्रसाद
|संग्रह=लहर / जयशंकर प्रसाद
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<poem>
वे कुछ दिन कितने सुंदर थे ?
जब सावन घन सघन बरसते
इन आँखों की छाया भर थे
सुरधनु रंजित नवजलधर से-
भरे क्षितिज व्यापी अंबर से
मिले चूमते जब सरिता के
हरित कूल युग मधुर अधर थे
वे कुछ दिन कितने सुंदर थे ?<br>जब सावन घन सघन बरसते<br>इन आँखों की छाया भर थे<br><br> सुरधनु रंजित नवजलधर से-<br>भरे क्षितिज व्यापी अंबर से<br>मिले चूमते जब सरिता के<br>हरित कूल युग मधुर अधर थे<br><br> प्राण पपीहे के स्वर वाली<br>बरस रही थी जब हरियाली<br>रस जलकन मालती मुकुल से<br>जो मदमाते गंध विधुर थे<br><br>
चित्र खींचती थी जब चपला<br>नील मेघ पट पर वह विरला<br>मेरी जीवन स्मृति के जिसमें<br>खिल उठते वे रूप मधुर थे <br><br/poem>
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