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{{KKRachna
|रचनाकार=शलभ श्रीराम सिंह
|संग्रह=उन हाथों से परिचित हूँ मैं / शलभ श्रीराम सिंह
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
यह रास्ता परेशानी का है
इसी पर चला जाए पहले।
यह रास्ता सुख का है
बच्चों से कहो इस पर आगे बढें।
यह रास्ता कुनकुनी धूप और
ताज़ा हवाओं का है
औरतों को इस रास्ते से गुज़ारा जाए
बे-झिझक।
यह रास्ता नए सपनों और नई मंजिलों का है
पूरी कौम को उतारा जाए इस पर।
यह रास्ता भविष्य का है
इस पर हम सब को साथ-साथ चलना है।
रचनाकाल : 1991, विदिशा
</poem>
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|संग्रह=उन हाथों से परिचित हूँ मैं / शलभ श्रीराम सिंह
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यह रास्ता परेशानी का है
इसी पर चला जाए पहले।
यह रास्ता सुख का है
बच्चों से कहो इस पर आगे बढें।
यह रास्ता कुनकुनी धूप और
ताज़ा हवाओं का है
औरतों को इस रास्ते से गुज़ारा जाए
बे-झिझक।
यह रास्ता नए सपनों और नई मंजिलों का है
पूरी कौम को उतारा जाए इस पर।
यह रास्ता भविष्य का है
इस पर हम सब को साथ-साथ चलना है।
रचनाकाल : 1991, विदिशा
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