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{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रमा द्विवेदी }}{{KKCatKavita}}<poem>चुप-चुप रह कर आंसू पीना, आसान न यह गम होता है। मिट-मिट करके जीते जाना, आसान न यह दम होता है॥
बंधुआ बन-बन कर जीना,
आसान न वो मन होता है।
तप-तप कर कुछ बनते जाना,
आसान न यह फ़न होता है॥
तन का बंधन,मन का क्रंदन,
यह बोझ न कुछ कम होता है।
कोल्हू के बैल सा चलते जाना,
आसान न यह श्रम होता है॥