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चाह / आहत युग / महेन्द्र भटनागर

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|संग्रह=आहत युग / महेन्द्र भटनागर
}}
{{KKCatKavita}}<poem>जीवन अबाधित बहे, <br> जय की कहानी कहे ! <br><br>
आशीष-तरु-छाँह में <br> जन-जन सतत सुख लहे ! <br><br>
दिन-रात मन-बीन पर <br> प्रिय गीत गाता रहे ! <br><br>
मधु-स्वप्न देखे सदा, <br> झूमे हँसे गहगहे ! <br><br>
मायूस कोई न हो, <br> लगते रहे कहकहे ! <br><br>
हर व्यक्ति कुन्दन बने, <br> अन्तर-अगन में दहे ! <br><br>
अज्ञात प्रारब्ध का <br> हर वार हँस कर सहे !</poem>
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