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निज प्रजा-परिवार-पालन-भार
यदि न आर्य करें स्वयं स्वीकार
तो चुनों तुम अन्य निज नरपाल,
जो किसी माँ का जना हो लाल।
व्यर्थ हो यदि भरत का उद्योग,
तो करें इतनी कृपा सब लोग--
इस, पिता ही की चिता के पास,
मुझ अगति को भी मिले चिरवास!"
साथ ही आनन्द और विषाद
’जय भरत’, ’जय राम’ जय जय नाद!
लोटते थे पर भरत गति-हीन
पितृ-चिता के पादतल में लीन।
दे रहे थे धैर्य लोग सराह,
विकल थे सब किन्तु आप कराह।
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