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नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रवीन्द्र प्रभात }} {{KKCatGhazal}} <poem> मसलों से ग्रस्त है…
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{{KKRachna
|रचनाकार=रवीन्द्र प्रभात
}}
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मसलों से ग्रस्त है जब आदमी इस देश में ,
किस बात की चर्चा करें आज के परिवेश में ?
कल तक जो पोषक थे, आज शोषक बन गए-
कौन करता है यकीं इस गांधी के उपदेश में ?
माहौल को अशांत कर शांति का उपदेश दे,
घूमते हैं चोर - डाकू साधुओं के वेश में ।
कोशिशें कर ऎसी जिससे शांति का उद्घोष हो ,
हर तरफ अमनों-अमां हो गांधी के इस देश में ।
है कोई वक्तव्य जो पैगाम दे सद्भावना का ,
बस यही है हठ छिपा 'प्रभात'के संदेश में ।
<poem>
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|रचनाकार=रवीन्द्र प्रभात
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मसलों से ग्रस्त है जब आदमी इस देश में ,
किस बात की चर्चा करें आज के परिवेश में ?
कल तक जो पोषक थे, आज शोषक बन गए-
कौन करता है यकीं इस गांधी के उपदेश में ?
माहौल को अशांत कर शांति का उपदेश दे,
घूमते हैं चोर - डाकू साधुओं के वेश में ।
कोशिशें कर ऎसी जिससे शांति का उद्घोष हो ,
हर तरफ अमनों-अमां हो गांधी के इस देश में ।
है कोई वक्तव्य जो पैगाम दे सद्भावना का ,
बस यही है हठ छिपा 'प्रभात'के संदेश में ।
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