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|रचनाकार = रघुवीर सहाय|संग्रह = आत्महत्या आत्महत्या के विरूद्ध विरुद्ध / रघुवीर सहाय}}{{KKCatKavita}}<poem>
एक शोर में अगली सीट पे था
दुनिया का सबसे मीठा गाना
एक हाथ में मींजा दिल था मेरा
एक हाथ में था दिन का खाना.खाना।
इस डर से कि बस रुक जाएगी
आवाज जहां मैं दे दूंगादूँगामैं सुनता था. था। कोई छू ले कहीं
मेरी पीठ नहीं- आना जाना लोगों का
हंसना गन्धाना- सीने में भरे साबूदाना
मोटे बुजदिल. घुप. बुजदिल। घुप। शहरों के.के।
तब मैं समझा
वह अनिता थी
अनिता? वह सीधी सलोतरी अपनी अनिता थी
ला कबाना
कोई सुन न सका.सका।
मेरी खुशहाली के दिन में
मुझसे दो आने ले न सका. सका। मैं हो न सकामैं सो न सका. सका। मैं रो न सका. सका। मैं पों न सका
पों क्या माने?
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