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<poem>
सीता असगुन कौं कटाई नाक एक बेरि
::सोई करि कूब राधिका पै फेरि फाटी है ।
कहै रतनाकर परेखौं नाहिं याकौ नैंकु
::ताकी तौ सदा की यह पाकी परिपाटी है ॥
सोच है यहै कै संग ताके रंगभौन माहिं
::कौन धौ अनोखौ ढंग रचति निराटी है ।
छाँटि देति खाट किधौं पाटि देति माटी है ॥76॥
</poem>
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