भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
{{KKCatGhazal‎}}‎
<poem>
परिन्दाजब भी कोई चीख़ता हैख़ामोशी का समुंदर टूटता है अभी तक आँख की खिड़की खुली हैकोई कमरे के अंदर जागता है चमकती धूप का बेरंग टुकड़ाअकेला पर्वतों पर घूमता है घने जंगल से लेकर घाटियों तकहवा का टेढ़ा-मेढ़ा रास्ता है गली के मोड़ पर तारीक कमराहमारी आहटें पहचानता है बुलंद आवाज़ में कहती हैं लहरेंसमुंदर दो किनारे जोड़ता है।
</poem>
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader
54,376
edits