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<poem>
सीत-घाम-भेद खेद-सहित लखाने सब
::भूले भाव भेदता-निषेधन बिधान के ।
कहै रतनाकर न ताप ब्रजबालनि के
::काली-मुख ज्वालना दवानल समान के ॥
पटकि पराने ज्ञान-गठरी तहाँ ही हम
::थमत बन्यौ न पास पहुँचि सिवान के ।
छाले परे पगनि अधर पर जाले परे
::कठिन कसाले परे लाले परे प्रान के ॥111॥
</poem>
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