भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार=एकांत श्रीवास्तव |संग्रह=अन्न हैं मेरे शब्द / एकांत श्रीवास्तव }}{{KKCatKavita}}<Poem>धान-कटाई के बाद <br />खाली खेतों में<br />वे रंगीन चिडि़यों की तरह उतरती हैं<br />सिला बीनने झुण्‍ड की झुण्‍ड<br />और एक खेत से दूसरे खेत में<br />उड़ती फिरती हैं<br /><br />दूबराज हो<br />विष्‍णुभोग या नागकेसर<br />वे रंग और खुशबू से<br />उन्‍हें पहचान लेती हैं<br /><br />दोपहर भर फैली रहती है<br />पीली धूप में उनकी हॅंसी<br />और गुनगुनाहट<br /><br />उनके बालों में हॅंसते रहते हैं<br />कनेर के फूल<br />और एक गुलाबी रोशनी <br />उनके चेहरे से फूटकर<br />फैलती रहती है धरती पर<br /><br />जब झुकने लगते हैं दिन के कन्‍धे<br />और उन्‍हें लगता है कि इतनी <br />बालियों से हो जायेगा तैयार<br />एक जून के लिए बटकी भर भात<br />वे लौट जाती हैं घर<br /><br />जैसे चोंच मारकर उड़ जाने के बाद भी<br />बहुत देर तक भरा रहता है<br />पानी में जलपॉंखी का संगीत <br />खाली खेतों में<br />बहुत देर तक भरा रहता है <br />उनका होना.<br /><br />
--[[सदस्य:Pradeep Jilwane|Pradeep Jilwane]] 10:42, 24 अप्रैल 2010 (UTC)दूबराज होविष्‍णुभोग या नागकेसरवे रंग और खुशबू सेउन्‍हें पहचान लेती हैं दोपहर भर फैली रहती हैपीली धूप में उनकी हँसीऔर गुनगुनाहट उनके बालों में हँसते रहते हैं केसर के फूलऔर एक गुलाबी रोशनी उनके चेहरे से फूटकरफैलती रहती है धरती पर जब झुकने लगते हैं दिन के कन्‍धेऔर उन्‍हें लगता है कि इतनी बालियों से हो जायेगा तैयारएक जून के लिए बटकी भर भातवे लौट जाती हैं घर जैसे चोंच मारकर उड़ जाने के बाद भीबहुत देर तक भरा रहता हैपानी में जलपाँखी का संगीत खाली खेतों मेंबहुत देर तक भरा रहता है उनका होना।</poem>
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader
53,693
edits