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Kavita Kosh से
<Poem>
मुझे याद है पिता
वसंत की वह कोमल सांझसाँझतुम आँगन में oैठे बैठे थे और
तुम्हारे स्मॄति-कैनवास पर
विभिन्न फूलनुमा घटनाएँ डोल रही थीं