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|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}<poem>दर्द जो जिस्म की तहों में बिखरा है
उसे रातें गुजारने की आदत हो गई है
उससे भी पहले से आदत पड़ी होगी
भूखी रातों की।</poem>